मध्यप्रदेश सिखाएगा अन्य राज्यों को वन प्रबंधन, दिख रहा नवाचारों का असर
भोपाल। मध्यप्रदेश वैसे तो टाइगर स्टेट है ही, साथ में चीता स्टेट, लेपर्ड स्टेट, वुल्फ स्टेट, वल्चर स्टेट भी होने का गौरव भी इस राज्य के नाम है। शुक्रवार 17 जनवरी 2025 को सीएम डॉ. मोहन यादव ने प्रदेश के वन प्रबंधन क्षेत्र में हुई उपलब्धियों को गिनाया। साथ ही, उन्होंने यह दावा भी किया कि वन और वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में किए गए नवाचारों का असर जमीनी स्तर पर दिखाई दे रहा है।
भोपाल समेत 4 शहरों में बनेंगे नगर वन
राज्य के वन आवरण में 1063 वर्ग किलोमीटर का इजाफा एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। नगर वन योजना में राज्य को देश में अग्रणी बनाए रखने के लिहाज से इस साल प्रदेश में 39 नगर वन बनाने की मंजूरी मिली है। वहीं, उज्जैन, चित्रकूट, खजुराहो और भोपाल में सांस्कृतिक वनों की स्थापना भी की जाएगी। सीएम ने वन संपदा और वन्यजीवों के बेहतर प्रबंधन और नवाचारों का संकल्प भी दोहराया।
वनों का कटान रोकेंगे, वनोपज बढ़ाएंगे
सीएम ने प्रदेश में खुशहाली लाने के लिए वनों का कटान सख्ती से रोकने की बात कही तो वहीं, वनोपज बढ़ाने के सभी संभावित उपाय करने का भरोसा भी दिलाया। इसके साथ ही उन्होंने वनोपज की डिमांड एंड सप्लाई के अंतर को कम करने के लिए वन रोपण और प्राइवेट वानिकी को बढ़ावा देने की बात भी कही। वहीं, सीएम ने वन और वन्यजीवों के संरक्षण—संवर्धन के लिए वन महोत्सव, अनुभूति कार्यक्रम, वन्यप्राणी संरक्षण सप्ताह जैसे आयोजनों के माध्यम से हर साल करीब 2 लाख लोगों को जोड़े जाने की जानकारी भी दी।
वन प्रबंधन में ग्रामीणों की सहभागिता बढ़ेगी
सूबे के मुखिया ने यह भी कहा कि वन प्रबंधन में ग्रामीणों की सहभागिता को बढ़ाने के लिए संयुक्त वन प्रबंधन प्रणाली मजबूत की जाएगी। वनोपज से प्राप्त होने वाली शुद्ध आय को प्राथमिक वनोपज समितियों को ट्रांसफर करने वाला मध्यप्रदेश देश में पहला राज्य है। संयुक्त वन प्रबंधन प्रणाली से वनवासियों को सीधा लाभ मिला है। यह व्यवस्था पारदर्शी होने से वनवासियों और आदिवासियों के शोषण पर रोक लगेगी।
वनोपज का उचित मूल्य दिया जा रहा
सीएम ने कहा कि मध्यप्रदेश में वनोपज का समर्थन मूल्य निर्धारित किया गया है। वनवासियों को वनोपज का उचित मूल्य दिए जाने से उनका आर्थिक और सामाजिक विकास हो रहा है। वनवासियों को वनोपज प्रसंस्करण से जोड़ा गया है, जिससे उन्हें अतिरिक्त रोजगार मिल रहा है। वनवासियों को वनोपज की गुणवत्ता के आधार उचित मूल्य दिया जा रहा है। साथ ही, वनोपज की शुद्ध आय के एक अंश से उनके लिए आधारभूत संरचनाएं तैयार की जा रही हैं।
एक पेड़ मां के नाम अभियान में रोपे 6 करोड़ पौधे
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने जानकारी देते हुए बताया कि ई-प्रणाली के माध्यम से काष्ठागारों में वनोपज की नीलामी शुरू कर दी गई है। वन विभाग ने एक पेड़ माँ के नाम अभियान चलाया था, जिसका बहुत सकारात्मक असर दिखाई दिया। इस अभियान के तहत करीब 6 करोड़ 16 लाख पौधे लगाए गए। वहीं, राज्य में 16.09 लाख मानक बोरा तेंदूपत्ता संग्रहण का लक्ष्य रखा गया था, जिसके विपरीत 16.68 लाख मानक बोरा तेंदूपत्ता का संग्रहण किया गया। वहीं, तेंदूपत्ता संग्रह में पारिश्रमिक के तौर पर 667.20 करोड़ रुपए की राशि का वितरण किया गया।
57 वन—धन विकास केंद्रों को मिली मंजूरी
सीएम यादव ने बताया कि प्रधानमंत्री जनमन योजना के तहत विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के लिए 57 वन-धन विकास केंद्रों को मंजूर किए गए हैं। वहीं, वर्ष-2025 में रोपे जाने के लिए वन विभाग करीब 5 करोड़ पौधे तैयार करने में जुटा है। मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि पेसा एक्ट के तहत प्रदेश की 243 ग्राम सभाओं में 22 हजार 212 मानक बोरा तेंदूपत्ता संग्रह कर 11 करोड़ 36 लाख रुपए का बिजनेस किया गया है। वहीं, 2024 में 125 करोड़ रुपए तेंदूपत्ता बोनस वितरण का लक्ष्य रखा गया है।
मंदसौर में चीता बसाए जाने की तैयारी
मंदसौर जिले के गांधीसागर सेंक्चुरी में अब चीता बसाए जाने की प्रक्रिया तेज कर दी गई है। सीएम ने बताया कि चीता परियोजना के दूसरे चरण में गाँधी सागर में चीतों को लाया जाएगा। इसके लिए प्रे—बेस तैयार किया जा रहा है। साथ ही, अन्य व्यवस्थाएं भी की जा रही हैं। वहीं, शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क को टाइगर रिजर्व बनाने की सहमति नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी ने दे दी है। प्रदेश में अब वन्यजीवों की पोस्टमार्टम रिपोर्टिंग प्रणाली को वेब आधारित कर दिया गया है। प्रदेशभर में 15 हजार से अधिक वन समितियाँ गठित कर इनकी कार्य-प्रणाली को ज्यादा प्रभावी बनाया जा रहा है।
बफर—सफर योजना से ईको पर्यटन को लगेंगे पंख प्रदेश के टाइगर रिजर्वों में पर्यटक बफर—सफर योजना के तहत विभिन्न गतिविधियों का आनंद ले सकेंगे। सीएम ने बताया कि बफर-सफर योजना में पर्यटक कई एक्टिविटीज कर सकेंगे। टूरिस्ट अब टाइगर रिजर्व के बफर क्षेत्रों में प्राकृतिक स्थलों, वन और वन्यजीवों के साथ कई ईको-टूरिज्म एक्टिविटीज का लुत्फ ले सकेंगे। इससे कोर क्षेत्र में पर्यटकों का दबाव कम होगा।