भोपाल। भारतीय गणराज्य को बनाने में तत्कालीन स्वतंत्र और संप्रभुतासंपन्न राजपूत राजतंत्रों का सबसे बड़ा योगदान रहा है। भारत में चंद्रवंशी राजपूतों के राज भी शामिल किए गए हैं। भारत निर्माण से संबंधित इस आलेख में जूनागढ़ के चंद्रवंशी राजपूतों के गौरवशाली इतिहास की महत्वपूर्ण जानकारी दी जा रही है, जो आज क्षत्रिय राजपूतों के लिए ही नहीं, हर एक भारतीय के लिए जानना आवश्यक है।
चंद्रवंशियों का प्रमुख केंद्र था जूनागढ़
चंद्रवंशी राजपूत की मुख्य गादी जूनागढ़ रही है। इस चंद्रवंशी/यदुवंशी कुल का इतिहास सन् 875 से 1505 ईस्वी तक मुख्य रूप से मिलता है। इस विशाल वंश ने 34 छोटे—बड़े उपवंशों को जन्म दिया, जिनमें चूड़ासमा, जाडेजा, भाटी, सरवैया, वारैया, लाठियां, जादव, जादौन, खंगार, रायजादा शामिल हैं। इस वंश का गोत्र, शाखा माद्यानी, कुलदेवी मां अंबे, आदिपुरुष भगवान नारायण, शंख अजेय, नदी कालिंदी, नगाड़ा अजीत, मुख्य गादी जूनागढ़ है।
भगवान आदि नारायण की 119वीं पीढ़ी में गर्वगोठ नामक राजा हुए, जिन्होंने सन 31 में शोणितपुर पर राज्य किया। राजा गर्वगोठ की 22वीं पीढ़ी में राजा देवेंद्र हुए। इनके चार पुत्र असपत, नरपत, गजपत, और भूपत हुए। जयेष्ठ पुत्र असपत को शोणितपुर का राज्य मिला। गजपत ने विक्रम संवत 708 वैशाख सुदी 3 दिन शनिवार को रोहिणी नक्षत्र में गजनी शहर बसाया और उनके भाई नरपत को जाम की पदवी देकर राजा बनाया।
नरपत जाम के वंशज हैं जड़ेजा
नरपत जाम के वंशज जडेजा कहलाए। राजा भूपत ने दक्षिण में जाकर शैलेंद्रपुर जीता और भाटिया नगर बसाया। वहां के राजा के वंशज भाटी कहलाए, जो बाद में जैसलमेर के संस्थापक बने। गजपत के 15 पुत्र हुए। बड़े पुत्र का नाम शालवाहन था। शालवाहन के पुत्र यदुमायन और यदुमायन के पुत्र जसकरण हुए। जसकरण के पुत्र समाकुमार और उनके पुत्र चूड़ा चंद्र हुए। चूड़ाचंद्र के नाना वामनस्थली (जिसे आज वनस्थली कहा जाता है) के राजा थे। इनकी कोई संतान नहीं होने से इन्हें वामनस्थली का राजा बनाया गया। चूड़ाचंद्र ने आसपास के राज्यों को जीत कर सोरठ की स्थापना की। इसका उल्लेख वनस्थली के पास धांधूसार के हानिभाव में स्थित शिलालेख में वर्णित है।
श्री चंद्रचूड़ चूड़ाचंद्र चूड़ा सामान मधु मधुतदायत!
जयति नृपदंश वंशतास संस्तप्रसन वंश !!
(अर्थात जिस प्रकार चंद्रचूड़ (शंकर) के मस्तिष्क पर चंद्रमा शुभ शोभित है उसी प्रकार सभी उच्च कुल के राजाओं के पर चंद्रवंशी चूड़ाचंद्र सुशोभित है)। यहीं से इस वंश को समा नाम मिला।
विश्वराह ने जीते सौराष्ट्र, नलितपुर
चंद्रचूड़ ने ईस्वी सन 875 से ईसवी सन 907 तक राज किया चंद्रचूड़ के पुत्र हमीर हुए। हमीर के पुत्र मूलराज ने ईस्वी सन 960 से 915 तक राज्य किया। इन्होंने सिंन्ध पर आक्रमण कर जीता था। मूलराज के जयेष्ठ पुत्र विश्वराह ने 915 से 940 तक राज्य किया और नलितपुर राज्य, सौराष्ट्र को जीतकर जूनागढ़ राजधानी बनाई। विश्वराह के पुत्र ग्रहरिपु हुए। इनके कई नाम प्रचलित हुई जैसे ग्रहार, ग्रहार सिंह। ग्रहारियो अपने नाम में “रा” की पदवी धारण करने वाले यह पहले राजा बने।कच्छ के राजा जामलक्ष फुलानी पाटन के राजा मूलराज सोलंकी “रा” ग्रहरिपु के समकालीन थे।
सन् 979 ईस्वी में आरकोट के युद्ध में लाखा फुलानी की मृत्यु हुई और रा ग्रहरिपु को पाटन का सर्व स्वामित्व स्वीकार करना पड़ा। ग्रहरिपु के पुत्र “रा”कवार ने 907 से 1003 तक राज्य किया। “रा” नवधन ने 1025 से 1044 तक राज किया।
मोहम्मद गजनी को किया परास्त
सन् 1026 में मोहम्मद गजनी ने सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया। नवगढ़ ने वीरतापूर्वक लड़ते हुए गजनी की सेना को परास्त किया। “रा”नवगढ़ के जयेष्ठ पुत्र “रा”खंगार जूनागढ़ की गादी पर बैठे। इन्होंने वनस्थली में प्रसिद्ध बावड़ी का निर्माण कराया था। उनके पुत्र नवग्रह द्वितीय ने 1067 से 1097 तक राज्य किया। उसके बाद नवगढ़ ज्योति और उनके बाद राजा खंगार तृतीय ने जूनागढ़ पर शासन किया।
पाटन के राजा जयसिंह सोलंकी लगातार 12 वर्षों तक जूनागढ़ से आक्रमण करते रहे। अंत में जब हर बार हार मिली तो उन्होंने राजा रा खंगार द्वितीय के भांजे देवल और विसल (जो जय सिंह राजा के भतीजे भी थे) को अपनी तरफ मिलकर पूरे जूनागढ़ पर आक्रमण किया। इस आक्रमण में राजा रा खंगार द्वितीय की हार हुई और वह वीरगति को प्राप्त हुए। राजा जयसिंह ने बलपूर्वक उनकी रानी रानकदे को साथ ले जाना चाहा।
सती मां रानकदे का भव्य मंदिर
रानकदे महारानी बहुत ही तपस्विनी थी। महारानी ने अपनी रक्षा के लिए गिरनार पर्वत से रक्षा का आवाह्न किया। उसी समय गिरनार पर्वत से बड़ी-बड़ी चट्टानें राजा जयसिंह की सेना पर गिरने लगीं। यह देखकर राजा जयसिंह घबरा गए और महारानी के कदमों में गिरकर माफी मांगी। तत्काल महारानी ने माफ करते हुए हाथ के इशारे से गिरनार पर्वत से गिर रही चट्टानें को इशारा करके रोक दिया। आज भी आप अगर गिरनार पर्वत पर भ्रमण के लिए जाएं तो वह चट्टानें साक्षात प्रमाण हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि ये चट्टानें अभी गिर जाएंगी। उसके बाद महारानी सती हो गईं। सती होने के पूर्व महारानी ने राजा जयसिंह को निसंतान होने का श्राप दिया और अपने पति का नाम आगे चलकर वंश के रूप में जाना जाएगा, तभी से खंगार राजवंश की स्थापना हुई। आज भी बदावन के पास गुजरात में भोगल नदी के किनारे पर सती मां राणकदे का भव्य मंदिर बना हुआ है। सती मां के नाम से बॉलीवुड ने भी एक फिल्म बनाई थी।
खेत सिंह की वीरता के कायल थे पृथ्वीराज चौहान
रा नवगढ़ तृतीय ने सन 1125 से 1140 तक राज्य किया। इसके पश्चात उनके जयेष्ठ पुत्र कबाट द्वितीय ने 1140 से 1152 तक राज किया। इनके तीन पुत्र हुए खेत सिंह, जय सिंह और कान्हा पाल। खेतसिंह महाराजा पृथ्वीराज चौहान के विश्वसनीय सहयोगियों में रहे हैं। जूनागढ़ भ्रमण के दौरान महाराजा पृथ्वीराज चौहान ने खेत सिंह की वीरता और पराक्रमी योद्धा के गुणों को देख लिया था। इसीलिए वह अपने साथ दिल्ली ले आए थे। कान्हा पाल कादलसर रियासत के राजा बने। इसके पश्चात रा जय सिंह ने 1152 से 1180 तक राज्य किया। रा जयसिंह और रा खेतसिंह ने महाराजा पृथ्वीराज का कई युद्ध में सहयोग कर मुगलों को वीरतापूर्वक परास्त किया। इसका विवरण चंद्रवरदाई कृत पृथ्वीराज रासो की पृष्ठ संख्या 1195 छंद क्रमांक 109 से 133 तक दिया गया है।
मुस्लिम विजेता रहे यहां के शासक
रा रायसिंह 1180 से 1140 और रा जयसिंह के पुत्र जयमल 1201 से 1230 सत्ता में रहे। जूनागढ़ और धूमली के बीच युद्ध हुआ जिसमें जयमल विजय हुए। रा महिपाल द्वितीय 1230 से 1253, रा खंगार तृतीय 1253 से 1260, रा मांडलिक 1260 से 1306 गद्दी पर विराजमान रहे। रेवती कुंड के शिलालेख में राजा मांडलिक को मुस्लिम विजेता राजा के रूप में लिखा गया है। रा नवघन चतुर्थ ने 1306 से 1308 तक राज शासन रहा। नवघन ने अपने मामा रणजी गोहिल पर जफर खान के आक्रमण के समय सहयोग किया और वीरतापूर्वक लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। रा महिपाल तृतीय 1308 से 1325 ने अपने शासनकाल में सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। रा खंगार चतुर्थ 1325 से 1351 के बीच मुसलमानों के कई छोटे राज्यों को छीनकर अपने अधीन किया।
भीषण नरसंहार और जौहर
रा जय सिंह द्वितीय का 1351 से 1373 तक शासन रहा। उन्हें पाटन के तत्कालीन शासक जफर खान ने संधि करने के लिए बुलाया और छल से वार किया, तब रा जय सिंह ने वीरतापूर्वक जफर खान के 12 सेनापतियों की गर्दन तलवार के एक ही वार से उड़ा दी थी। इन सेनापतियों की कब्रें आज भी 12 शहीदों की कब्र के नाम से जानी जाती हैं। रा महिपाल ने 1373, रा मुक्ति सिंह ने 1373 से 1397 और रा मांडलिक द्वितीय 1397 से 1400 तक शासन किया। इनकी कोई संतान नहीं होने से इन्होंने अपने छोटे भाई मेंलगदेव को राजगद्दी सौंपी। रा मेलंगदेव ने 1400 से 1415 तक शासन किया। उनके शासन काल में मुस्लिम आक्रांता अहमद शाह से युद्ध हुआ जिसमें भयंकर नरसंहार हुआ और रानियां ने जौहर किया। रा जय सिंह तृतीय का शासन 1415 से 1440 के बीच रहा। उनके शासन काल में जब अहमद शाह की सेना ने गोपनाथ मंदिर पर आक्रमण किया तब इन्होंने अपनी सेना भेज कर मुस्लिम आक्रांताओं को परास्त किया।
भूपत सिंह के वंशज कहलाए रायजादा
रा महिपाल पंचम ने 1440 से 1472 तक राज किया। उन्होंने सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। 1472 में सुल्तान महमूद शाह ने जूनागढ़ पर तीसरी बार आक्रमण किया, जिसमें राजपूतों ने शाका युद्ध और रानियों ने जौहर किया। महाराज महिपाल पंचम वीरगति को प्राप्त हुए और जूनागढ़ सदा के लिए मुसलमानों के हाथों में चला गया। इस युद्ध के बाद पड़ोसी राजा ने वीरतास्वरूप महाराज मांडलिक के पुत्र भूपत सिंह को 84 गांव की जागीर दी। भूपत सिंह 1472 से 1505 जागीरदार रहे। भूपत सिंह के वंशज रायजादा कहलाए। महाराजा पृथ्वीराज चौहान के विश्वस्त सहयोगी रहे खेत सिंह को महाराजा पृथ्वीराज चौहान ने जुझोतखंड का राजा घोषित किया था।
संदर्भ ग्रंथ
— गुजराती मध्यकालीन साहित्य, लेखक-दुर्गा शंकर शास्त्री
— सौराष्ट्र का इतिहास, लेखक-शम्भुप्रसाद देसाई
— दर्शन और इतिहास, लेखक-राजेंद्र सिंह रायजादा
— खंगार राजपूत इतिहास, लेखक-बीएल ठाकुर
— चूड़ासमा राजवंशनी, लेखक-विक्रम सिंह रायजादा
— पृथ्वीराज रासो, लेखक-चंद्रवरदाई
— प्रभास और सोमनाथ, लेखक -शम्भुप्रसाद
