दिनेश सिंह भदौरिया, सीहोर। किसी के हाथ—पैर टूट जाएं या कोई अन्य अंग—भंग हो जाए तो रातापानी टाइगर रिजर्व के बफर जोन में स्थित मानता माता उन्हें ठीक कर देती हैं। जब व्यक्ति का अंग ठीक हो जाता है तो वह माता को ठीक हुए अंग की प्रतिकृति बनाकर विशेष पूजा के साथ भेंट करता है। जैसे किसी का टूटा हाथ ठीक हो जाए तो वह व्यक्ति मानता अर्थात् मनौती पूरी होने पर देवी को लकड़ी का हाथ अर्पित करता है। देवी के अधिकांश आराधक उन्हें मान्यता माता की जगह मानता माता कहकर ही बुलाते हैं।
यहां विराजमान हैं मानता माता
महाबलिया, कठौतिया, खारी और बावड़ी खेड़ा के बीच में बड़ा डोल है। डोल स्थानीय भाषा में उस जगह को कहते हैं, जहां पहाड़ियों और चट्टानों के बीच बारिश का पानी प्राकृतिक रूप से जमा हो जाता है। सुरम्य स्थान पर बने बड़ा डोल के पास बरसात में एक बहुत सुंदर झरना बहता है। इसी झरने के पास स्थित है मानता माता का स्थान। यहां कोई देवी की मूर्ति स्थापित नहीं है और न ही कोई मंदिर बना है। लाखों वर्ष पुरानी चट्टानों की परतों के बीच बनी गुफा में शक्ति को विराजमान मानकर गोंड जनजाति के लोग लंबे समय से पूजा करते आ रहे हैं।

गोंड जनजाति की आराध्य देवी
मानता माता के स्थान के पास बसी महाबलिया बस्ती में लगभग 25 घर ही होंगे, जिनमें भील—भिलाला जनजाति के लोग रहते हैं। लोगों का कहना है कि कई दशक पहले इस क्षेत्र में गोंड जनजाति के लोग ही रहते थे और वे सैकड़ों साल पहले से चली आ रही परंपरा के अनुसार मानता देवी की पूजा करते थे। कालांतर में गोंड लोग यहां से निकलकर दूसरे गांवों में बस गए, लेकिन उन्होंने अपनी आराध्य देवी की परंपरा को बनाए रखा। वर्तमान में गोंड जनजाति के कुछ लोग आंवली खेड़ा में रहते हैं।

अर्पित किए जाते लकड़ी के अंग
आज भी गोंड समुदाय के लोग यहां आते हैं और भंग अंगों के ठीक होने की प्रार्थना देवी से करते हैं। मनौती पूरी होने पर श्रद्धालु उसी अंग की शक्ल में लकड़ी का अंग बनाकर देवी को भेंट करते हैं। इसके साथ ही देवी को विशेष पूजा भी अर्पित की जाती है, जिसमें मुर्गा, बकरा, शराब आदि सामग्री शामिल होती है। महिलाएं भी पति के उत्तम स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए मानता माता को चूड़ी, बिंदी, सिंदूर आदि सुहाग की चीजें अर्पित करती हैं।

अनमोल पुरा संपदा है यहां
कई प्रजातियों के वृक्षों से यहां का वन क्षेत्र आच्छादित है। इस वन क्षेत्र में बड़ा डोल मानता माता के पास बने प्राकृतिक झरने का पानी आगे चलकर नदी का रूप ले लेता है, जो आम डोल, मसूरिया डोल, कठौतिया होते हुए रायसेन जिले के मंडीदीप के पास कलियासोत नदी में मिलती है। इस क्षेत्र में बहुत पुरानी गुफाएं मौजूद हैं, जिनका सही अनुमान अभी तक नहीं लगाया जा सका है। इन गुफाओं में वेशकीमती रॉक पेंटिंग्स मौजूद हैं, जिनपर शैलचित्र अंकित हैं। माना जाता है कि ये शैलचित्र पाषाण काल के हैं। इन गुफाओं में बाघ, भालू, तेंदए आदि वन्यजीव शरण लेते हैं। इस जंगल में बिना गाइड के जाना जोखिम भरा हो सकता है।