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    मध्यप्रदेश

    केरी नहीं, केहरी महादेव हैं ये, इनकी सिंह करता था आराधना

    Dinesh BhadauriaBy Dinesh BhadauriaAugust 3, 2025Updated:August 14, 2025No Comments3 Mins Read
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    केरी नहीं, केहरी महादेव हैं ये, इनकी सिंह करता था आराधना
    केरी नहीं, केहरी महादेव हैं ये, इनकी सिंह करता था आराधना
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    दिनेश सिंह भदौरिया, औबेदुल्लागंज। बब्बर शेर इस शिवलिंग के सामने नतमस्तक होकर बैठता था, एकदम शांत। ऐसा लगता था जैसे शिव की आराधना में लीन हो। इस स्थान पर उसने कभी किसी जीव का शिकार भी नहीं किया। यहां आने वाले लोग और श्रद्धालु इसे शिव की शक्ति का चमत्कार मानते हैं। महादेव शिव का यह स्थान आज केरी महादेव के नाम से जाना जाता है, जो रातापानी टाइगर रिजर्व में आता है। बताया जाता है कि यहां​ सिंह के आकर बैठने से इस शिवलिंग को केहरी महादेव के नाम से पुकारा जाता था। सिंह को केहरी भी कहते हैं। यहां पर आम के वृक्ष भी होने के कारण बाद में इस स्थान को केरी महादेव के नाम से जाना गया।

    ऐसे पहुंचे केहरी महादेव

    केहरी महादेव पहुंचने के लिए दो रास्ते हैं। नर्मदापुरम से औबेदुल्लागंज होते हुए जंगल के रास्ते यहां पहुंचा जा सकता है। भोपाल से नर्मदापुरम मार्ग से होकर यहां पहुंचने में करीब 44 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है, वहीं भोपाल शहर से कोलार रोड के घने जंगलों से होकर जाने में करीब 24 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। इस स्थान पर सालभर जल धारा बहती रहती है। हर वर्ष शिवरात्रि पर यहां मेला भी लगता है, जिसमें आसपास के क्षेत्रों के अलावा दूर-दूर से लोग आते हैं। केहरी महादेव की घाटी में प्रवेश करने से पहले चट्टान पर हनुमान जी महाराज विराजमान हैं।

    महादेव के जयकारे से तेज गिरता पानी

    भैंरोपुर, भोपाल के ज्ञान सिंह का कहना है कि 1970—80 के दशक में यहां पर सिंह या बब्बर शेर अक्सर दिखते थे। यहां चट्टानों से बारह महीनों जलधारा गिरती है और महादेव की जय बोलने से पानी का गिरना तेज हो जाता है। जिले के उदयपुरा निवासी प्रयागराज बताते हैं कि उन्होंने भी इस स्थान का पुराना नाम केहरी महादेव सुना है, लेकिन संभवत: बाद में आम के पेड़ों कारण इस जगह को केरी या कैरी महादेव के नाम से पुकारा जाने लगा होगा। भोपाल के रहने वाले महादेव शिव के भक्त आईटी इंजीनियर राहुल राय यहां वर्षों से आ रहे हैं। उनका कहना है कि नैसर्गिक सौंदर्य और टाइगर समेत दुर्लभ वन्यजीवों से भरे इस स्थान को संवारे जाने की जरूरत है।

    पुरातत्व करे संरक्षण

    आस्था के इस केंद्र पर मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के अलावा सीहोर, रायसेन के स्थानीय लोगों के अलावा अन्य स्थानों के लोग पहुंचते हैं। श्रद्धालुओं का कहना है कि इस महत्वपूर्ण स्थल को पुरातत्व विभाग संरक्षित करे। रातापानी टाइगर रिजर्व बनने के बाद से इस स्थल के संरक्षण की उम्मीद बढ़ी है।

    इतनी होती है एंट्री फीस

    केहरी या केरी महादेव जाने के लिए कोलार रोड स्थित झिरी वाटर प्यूरीफिकेशन प्लांट के पास से जाना होता है। इस स्थान को रातापानी जंगल सफारी गेट के नाम से जाना जाता है। यहां जाने के लिए चार पहिया वाहन को 750 रुपए और दो पहिया वाहन को 50 रुपए शुल्क देना पड़ता है। वहीं, पैदल ट्रैकिंग करने वालों के लिए 12 रुपए का शुल्क लिया जाता है।

    बिखरी हुई है वन संपदा

    केहरी महादेव तक पहुंचने के रास्ते और आसपास के क्षेत्र में अपार वन संपदा बिखरी हुई है। यहां पर तेंदू, सागौन, आंवला, जंगली बेलपत्र, महुआ, आम, जामुन, शीशम, सिरस समेत कई प्रजातियों के वृक्ष और झाड़ियां हैं। इसके साथ ही कई तरह की दुर्लभ जड़ी—बूटियां भी इस वन क्षेत्र में पाई जाती हैं। रातापानी जंगल में टाइगर, चीतल, लंगूर, नीलगाय, चौसिंगा, काला हिरण, लकड़बग्गा सियास, लोमड़ी आदि कई तरह के वन्यजीव रहते हैं।

    obedullaganj forest ratapani tiger reserve
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    Dinesh Bhadauria

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