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    मध्यप्रदेश

    प्रो. (डॉ.) एके चौधरी के इस सहमति पत्र को समझ लिया तो न जाने कितने डॉक्टरों और स्टाफ की बचेगी जान…!

    adminBy adminSeptember 12, 2025Updated:September 12, 2025No Comments6 Mins Read
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    भोपाल। डॉक्टर्स को आएदिन तमाम तरह की अप्रिय स्थितियों का सामना करना पड़ता है। हॉस्पिटल परिसर में किसी रोगी या हमले, एक्सीडेंट में घायल व्यक्ति की इलाज के दौरान मृत्यु होने पर हंगामा हो जाता है। कई बार आक्रोशित लोग हमला भी कर देते हैं। इन सब परिस्थितियों से परे मुश्किल तब होती है जब न्यायालयीन या शासकीय प्रक्रिया में दोषी नहीं होते हुए भी कोई डॉक्टर या स्वास्थ्यकर्मी फंस जाता है।

    कंज्यूमर कोर्ट के दायरे में डॉक्टर, वकील-जज बाहर

    एलएन मेडिकल कॉलेज एंड जेके हॉस्पिटल के मेडिकल डायरेक्टर प्रो. डॉ. एके चौधरी का कहना है कि डॉक्टरों के लिए कानूनी दायरा काफी कस दिया गया है। डॉक्टर्स को कंज्यूमर कोर्ट के दायरे में रखा गया है, जबकि किसी भी स्तर या किसी भी कोर्ट के वकीलों को इससे बाहर रखा है। वकीलों की फीस का भी कोई निर्धारण नहीं है। वे अपनी मर्जी से फीस तय करते हैं और येन-केन-प्रकारेण जल्दी काम करवाने का भरोसा दिलाते रहते हैं। जब से चिकित्सक समुदाय कंज्यूमर कोर्ट के दायरे में आया है, तब से यह समुदाय भी कई तरह की अवांछित जांचें और दवाइयों का इस्तेमाल न्यायालयीन प्रक्रिया से बचने के लिए करने लगा है, जोकि सामाजिक हित में नहीं है। ज्युडीशियरी भी कंज्यूमर कोर्ट के दायरे से बाहर है। कई बार जो फैसला लोअर कोर्ट में होता है वह हायर कोर्ट में पलट दिया जाता है। न्यायालयीन प्रक्रिया में मामला निपटने में बहुत देरी होती है और वादी-प्रतिवादी परेशान हो जाते हैं।

    डॉ. एके चौधरी ने बनाया रक्षा कवच

    इन तमाम परेशानियों से बचने के लिए डॉ. एके चौधरी ने एक सहमति पत्र तैयार किया है। इस सहमति पत्र को लागू करते हुए डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मी मरीज या घायल व्यक्ति का इलाज शुरू करें तो कई अवांछित परेशानियों से बच सकते हैं। बता दें, राजधानी भोपाल के प्रमुख अस्पताल माने जाने वाले एलएन मेडिकल कॉलेज एंड जेके हॉस्पिटल में 250 से अधिक स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स और 200 से अधिक पोस्ट ग्रेजुएट चिकित्सक हैं। माना जा रहा है यह सहमति पत्र बड़े पैमाने पर डॉक्टर्स के लिए रक्षा कवच का काम करेगा।

    सहमति पत्र

    मरीजों के किसी इलाज एवं उनकी जांचो में सहमति जरूरी होती है। अस्पताल में आने वाले मरीजों की जांचे जैसे MRI,CT Scan, X Ray एवं Bronchoscopy आदि की स्पष्ट जांच के लिये बहुत से Contrast Media देना होता है जिस कारण मरीज की सहमति लेना जरूरी होता है। इन Contrast Media से बहुत से रिएक्शन हो जाते है जिसके बारे में हम मरीज एवं उनके रिश्तेदार को मौखिक एवं लिखित में समझाते है। यह बहुत जरूरी नियम होता है जिससे चिकित्सक एवं कार्यस्थल एवं संस्था के लिये न्यायालयीन एवं पुलिस कार्यवाही से बचने के लिये जरूरी होता है।

    सहमति पत्र के फायदे

    सहमति मौखिक एवं लिखित होना जरूरी होता है क्योंकि किसी भी चिकित्सीय कार्य में सुई लगाने से लेकर मरीज की जांचो में भी विभन्न प्रकार के रिएक्शन हो सकते है जैसे खुजली, उल्टी, शरीर में लाल-लाल चकत्ते, हाथ-पांव में सुन्नयन या अर्धबेहोशी (शॉक), गुर्दे में खराबी होने की संभावना भी होती है एवं कभी-कभी मरीज की मृत्यु की संभावना भी हो सकती है।

    मरीज को उसकी भाषा में सहमति पत्र समझाना पड़ता है एवं मरीज को समझाने के उपरांत हस्ताक्षर एवं नाम, पता एवं मोबाइल नम्बर दर्ज कराना जरूरी होता है।

    न्यायालयीन कार्यवाही से यह सहमति पत्र कुछ हद तक आपको परेशानी से बचाता है।

    मरीज को विभिन्न जांचों के लिये हमे समझाना चाहिए एवं मरीज की विस्तृत जानकारी प्राप्त कर तदानुसार इलाज करना चाहिए।

    सुई लगाने में, बोतल (IV Fluid) लगाने में कुछ रिएक्शन होते है Vasovagal Attack कहते है जो धीरे-धीरे ठीक हो जाते है एवं कभी-कभी एलर्जी को कम करने के लिये दवाई देना पड़ता है।

    मरीज को दमा की बीमारी, हृदय की बीमारी, ब्लडप्रेशर की बीमारी, गुर्दे की बीमारी या बहुत सी दवाईयों के रिएक्शन भी होते है। इन सबके बारे में मरीज से पुछ लेना चाहिए।

    चिकित्सक को मरीज की हालत एवं रिएक्शन से बचाने के लिये कुछ दवाईयों को अपने कार्यस्थल पर रखना जरूरी होता है।

    उपचार एवं जांचों में Contrast Media को लगाने से रिएक्शन होता है इसीलिए उनका इस्तेमाल करने से पहले चमड़ी में सेंसटिविटी टेस्ट कर लेना चाहिए।

    Contrast Media जैसे lodine agent, Barium Agent जो आंतों के, पेट के एवं गुदाद्वार की जांचों के लिये इस्तेमाल किए जाते हैं।
    इनसे अक्सर कुछ रिएक्शन होते है जिसके लिए चिकित्सक को निम्न दवाईयों की व्यवस्था रखनी चाहिए।

    1. एलर्जी की दवाई (Antihistamine injection)
    2. कार्टिकोस्टेरॉइड इंजेक्शन
    3. एड्रेनालाईन इंजेक्शन
    4. IV द्रव
    5. डेरिफिलिन इंजेक्शन
    6. अम्बू बैग और बॉयल का उपकरण
    7. ऑक्सीजन सिलेंडर

    चिकित्सक के साथ-साथ विशेषज्ञ एवं नर्सिंग की उपस्थिति जरूरी होती है क्योंकि समय रहते इलाज कर लिया जाता है तो चिकित्सक या संस्थान न्यायालयीन या पुलिस कार्यवाही से बच सकते हैं।

    अगर किसी मरीज को जांचों के दौरान या Contrast Media का इस्तेमाल करने से रिएक्शन हो तो ऐसी स्थिति में हमें निम्न कार्य करना चाहिए।

    1. इलाज करने वाले चिकित्सक को तुरंत सूचित करें।
    2. जिस दवा से रिएक्शन हो रहा हो उसे तुरंत बंद कर देना चाहिए।
    3. मरीज के लिए IV Fluid (DNS) चालू करना चाहिए एवं मरीज को आक्सीजन चालू कर देना चाहिए।
    4. अगर उल्टी हो रही हो तो उसे इंजेक्शन EMSET 2ml IV दे देना चाहिए।
    5. अगर कोई एलर्जी जैसे खुजली, लाल-लाल चकत्ते, उल्टी या घबराहट हो तो इंजेक्शन Avil 2ml तुरंत लगाना चाहिए एवं Levocetrizine 5mg की गोली देना चाहिए।
    6. Carticosteroid (Hydrocortisone) 100ml IV दे देना चाहिए।
    7. अगर सांस फूल रही है तो एवं अर्धचेतना अवस्था (शॉक) की स्थिति हो या ब्लडप्रेशर कम हो रहा है या हृदय की गति में परिवर्तन हो रहा हो तो बड़ों में Adrenaline 0.5-1ml (1/1000) देना चाहिए और बच्चा छोटा या 12 साल के करीब है तो 0.5ml चमड़ी के नीचे लगाया जाना चाहिए।
    8. अगर मरीज की सांस फूल रही है या उसे पहले अस्थमा की बीमारी हो तो उसे Derriphiline 2ml-4ml तक नसों द्वारा 10-15 मिनट तक दिया जाता है। बच्चे में 0.1ml/kg के हिसाब से देते हैं। यह दवाई 4-6 घंटे के अंतराल से पुनः दी जा सकती है।
    9. अगर ब्लडप्रेशर कम हो रहा हो तो Dopamine/Non Adrenaline दिया जाता है 500ml ग्लूकोज में 5ml या 60 बूंदें प्रति मिनट के हिसाब से देना चाहिए एवं Volume Expender लगाना चाहिए।
    10. अगर हृदय की गति बहुत कम हो जाये या हृदय बंद होने की स्थिति में इंजेक्शन Atropine 0.5-1ml दिया जाता है एवं उसे प्रति 1-2 घंटे में दोबारा दिया जा सकता है।

    उपरोक्त सभी दवाइयों का इस्तेमाल चिकित्सक द्वारा या उनकी देखरेख में किया जाना चाहिए लेकिन आक्सीजन एवं ग्लूकोज को चालू कर देना चाहिए।

    आक्सीजन का रक्त में लेवल ठीक से यानि 85 प्रतिशत से ऊपर नहीं हो रहा है तो बेहोशी के चिकित्सक की सलाह द्वारा स्वांस नली Intubation कर Ventilator लगाना चाहिए। जिससे कि रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा (SPO2) 90-95% के ऊपर पहुंच जाए।

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