पटना। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजनीति में बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव (Tejpratap Yadav) ने बिहार गठबंधन (Bihar Gathbandhan) के नाम से तीसरे मोर्चे के गठन का ऐलान कर दिया। पटना में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में राष्ट्रवादी जनलोक पार्टी (सत्य) के राष्ट्रीय अध्यक्ष सत्यपाल सिंह, प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सिंह और प्रिंस सिंह के साथ तेज प्रताप मंच पर नजर आए। नए गठबंधन को तेज प्रताप यादव मुख्यमंत्री का चेहरा बनकर लीड करेंगे। बिहार गठबंधन के ऐलान के बाद इंडिया अलायंस (INDIA Alliance) और एनडीए (NDA) दोनों के रणनीतिकार नफा-नुकसान का गणित सुधारने की माथापच्ची में जुट गए हैं।
तीसरे मोर्चे में कई छोटे दल
गठबंधन में भोजपुरिया जन मोर्चा, गरीब विकास दल समेत कई छोटे दलों को शामिल किया गया है। पार्टी प्रवक्ता प्रकाश सिंह ने कहा कि सभी दल कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर चुनाव लड़ेंगे और इसे भोजपुर सहित पूरे प्रदेश में मजबूत विकल्प के तौर पर उतारने की तैयारी है। प्रवक्ता का दावा है कि यह गठबंधन जनता की आवाज बनेगा और मौजूदा विकल्पों से अलग रास्ता दिखाएगा।
राजद-इंडिया अलायंस पर असर
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि तीसरे मोर्चे की एंट्री से चुनावी समीकरण किस ओर झुकेंगे? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तेज प्रताप का नया गठबंधन मुख्य तौर पर राजद और महागठबंधन (INDIA Alliance) के वोट बैंक को प्रभावित करेगा। यादव और मुस्लिम बहुल सीटों पर सीधा असर पड़ सकता है, क्योंकि इन इलाकों में वोटों का बंटवारा एनडीए के लिए अप्रत्यक्ष लाभदायक साबित हो सकता है। दूसरी ओर, यदि तेज प्रताप यादव युवाओं और हाशिए के वर्गों को जोड़ने में सफल होते हैं तो गठबंधन अपने दम पर भी कुछ सीटें निकाल सकता है, जिससे बिहार की राजनीति में ‘किंगमेकर’ की भूमिका में आ सकता है।
एनडीए को मिल सकता अप्रत्यक्ष लाभ
एनडीए के लिए यह स्थिति फिलहाल सकारात्मक मानी जा रही है, क्योंकि विपक्षी वोटों में बिखराव का सीधा फायदा सत्ताधारी गठबंधन को मिलेगा। वहीं, इंडिया एलायंस के लिए यह नई चुनौती है, क्योंकि तेज प्रताप के कदम से महागठबंधन की एकजुटता पर सवाल उठ खड़े हो गए हैं। खासकर उन सीटों पर जहां पहले से करीबी मुकाबला होता रहा है, तीसरे फ्रंट की मौजूदगी परिणामों को पूरी तरह पलट सकती है।
क्षत्रिय वोटर झुक सकते हैं
बिहार में पहले भी तीसरे मोर्चे की कोशिशें होती रही हैं, लेकिन वे लंबे समय तक टिक नहीं पाईं। तेज प्रताप का यह नया प्रयोग राजनीतिक जमीन पर थोड़ा सा भी असर बना पाया तो एनडीए और इंडिया अलायंस दोनों बड़े गठबंधनों को मुसीबत हो सकती है। एक बड़ा कारण यह भी है कि बिहार के क्षत्रिय राजपूत समुदाय पर दूसरे समुदाय के हमले हो रहे हैं। प्रदेश में सबसे ज्यादा 14 प्रतिशत आबादी यादव या अहीरों की है। इसके बाद 3.66 प्रतिशत ब्राह्मण, 3.45 प्रतिशत राजपूत, 3 प्रतिशत मुसहर, 2.87 प्रतिशत कुर्मी और 2.86 प्रतिशत भूमिहार हैं। इस तरह राज्य में 45 लाख से अधिक आबादी के अधिसंख्य वोट तीसरे मोर्चे की तरफ झुक सकते हैं। इसके अलावा अन्य उपेक्षित जातियों के मतदाता भी तीसरे विकल्प को चुन सकते हैं। तीसरा मोर्चा बनने के बाद सियासी समीकरणों को साधने के लिए राजनीतिक दलों के रणनीतिक गोटियां सेट करने में जुट गए हैं।