नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2025 को अपनी स्पीच में देशवासियों को एक दिवाली गिफ्ट देने का वादा किया था, जिसे अब जीएसटी काउंसिल ने मंजूरी दे दी है। नए जीएसटी ढांचे में अब केवल दो मुख्य स्लैब होंगे – 5 प्रतिशत और 18 प्रतिशत, जबकि शौक और लग्जरी सामानों के लिए 40 प्रतिशत का एक अलग स्लैब लागू होगा। इस बदलाव से दूध, घी, दवाइयां, टीवी, एसी, कार, बाइक और इंश्योरेंस जैसी पांच श्रेणियों की आवश्यक वस्तुएं सस्ती हो जाएंगी। लेकिन सवाल उठता है कि जब भारतीय अर्थव्यवस्था, खासकर आम आदमी, बेरोजगारी और नकदी संकट से जूझ रहा है, तो मोदी सरकार ने यह कदम क्यों उठाया?
इकॉनोमी को मिल सकती गति
नए जीएसटी स्लैब का लक्ष्य आम आदमी की जेब को राहत देना है। दूध, दवाइयां और अन्य रोजमर्रा की जरूरतों पर कर कम होने से मध्यम और निम्न आय वर्ग के लोगों को कुछ हद तक आर्थिक बोझ से राहत मिलेगी। सरकार का मानना है कि इससे उपभोक्ता खर्च बढ़ेगा, जो अर्थव्यवस्था को गति दे सकता है। टीवी, एसी और कार जैसी टिकाऊ वस्तुओं पर कर में कमी से मांग बढ़ने की उम्मीद है, जिससे ऑटोमोबाइल और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स जैसे क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं।
बेरोजगारी दर है 8 प्रतिशत
इस समय देश में बेरोजगारी दर 8 प्रतिशत के आसपास मंडरा रही है और ग्रामीण-शहरी क्षेत्रों में नकदी की कमी एक बड़ी समस्या बनी हुई है, तो यह कदम कई सवाल खड़े करता है। आलोचकों का कहना है कि लग्जरी वस्तुओं पर 40 प्रतिशत कर बढ़ाने से अमीर वर्ग की खरीदारी पर अंकुश लग सकता है, जिसका असर लक्जरी सामान बनाने वाली कंपनियों और उनके कर्मचारियों पर पड़ सकता है। इसके अलावा, जीएसटी में बदलाव से सरकारी खजाने पर भी दबाव बढ़ेगा, क्योंकि कर संग्रह में कमी आ सकती है।
जमीनी राहत या सिर्फ सब्जबाग
मोदी सरकार का यह कदम राजनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद, सरकार जनता के बीच अपनी छवि को और मजबूत करना चाहती है। लेकिन क्या यह “दिवाली गिफ्ट” वास्तव में आम आदमी की जिंदगी आसान करेगा, या यह सिर्फ एक अल्पकालिक राहत है? यह समय और अर्थव्यवस्था की स्थिति तय करेगी।