नई दिल्ली। भारत के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास अनेक वीर योद्धाओं के त्याग और बलिदान से भरा हुआ है। इन्हीं में से एक अमर क्रांतिकारी थे हरेकृष्ण सिंह भदौरिया (1827–1859), जिन्हें बिहार का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी (Bihar’s first freedom fighter) माना जाता है। क्रांतिवीर (Krantiveer Harekrishna Singh Bhadauria) का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। वे 1857 revolt के सच्चे नायक भी थे। उनका जीवन और संघर्ष आज भी स्वतंत्रता आंदोलन की गौरवगाथा को नई रोशनी प्रदान करता है।
प्रारंभिक जीवन
क्रांतिवीर हरेकृष्ण सिंह भदौरिया का जन्म 1827 में बिहार के शाहाबाद ज़िले के बरुभी गाँव में हुआ था। उनके पिता ऐदल सिंह भदौरिया एक ज़मींदार और जागीरदार थे। प्रारंभिक जीवन में वे जगदीशपुर रियासत के तहसीलदार और पीरो परगना के प्रभारी रहे। प्रशासनिक अनुभव और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें आमजन और क्रांतिकारी गतिविधियों में अग्रणी बना दिया।
1857 का विद्रोह और नेतृत्व
जब 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (First War of Independence) छिड़ा, तब वीर हरेकृष्ण सिंह ने ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी। वे महान सेनानी कुंवर सिंह की सेना में कमांडर-इन-चीफ (Commander-in-Chief) बने। उन्होंने अपने भाई बाबू अमर सिंह के साथ मिलकर कई निर्णायक युद्ध लड़े। क्रांतिकारी हरेकृष्ण सिंह ने लोहारा (जगदीशपुर से 10 मील पश्चिम) की लड़ाई में ब्रिटिश सेना के मेजर डगलस को करारी शिकस्त दी। यह विजय उस समय भारतीय सेनानियों के हौसले को और मजबूत करने वाली सिद्ध हुई।
बाबू वीर कुंवर सिंह के बाद भी संघर्ष
1858 में बाबू वीर कुंवर सिंह की मृत्यु के बाद भी हरेकृष्ण सिंह भदौरिया ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह जारी रखा। उन्होंने विद्रोही सेनाओं का नेतृत्व किया और बिहार की धरती पर स्वतंत्रता की मशाल जलाए रखी। अंग्रेजी सत्ता के लिए वे एक बड़ी चुनौती बन चुके थे।
क्रांतिवीर का बलिदान
आखिरकार, दिसंबर 1859 में अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ लिया और फांसी की सजा दी। इस प्रकार वे देश के लिए हँसते-हँसते अपने प्राण न्यौछावर कर गए। उनका बलिदान न केवल बिहार बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष के स्वतंत्रता आंदोलन के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।