पटना। बिहार की राजनीति एक बार फिर तीखी टकराहट के दौर में है। दरभंगा में कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कथित गाली देने के बाद शुरू हुआ विवाद अब राजनीतिक आंदोलन और आरोप-प्रत्यारोप की जंग में बदल गया है। यह विवाद केवल बिहार तक सीमित नहीं है, बल्कि उत्तर प्रदेश तक इसकी गूंज सुनाई दे रही है।
विवाद कैसे भड़का?
दरभंगा की एक सभा में राहुल गांधी ने पीएम मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया, जिसे बीजेपी ने प्रधानमंत्री और देश की जनता का अपमान बताया। इसी बयान ने सियासी भूचाल पैदा कर दिया। कांग्रेस के बचाव से पहले ही बीजेपी ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया और कार्यकर्ताओं को सड़कों पर उतार दिया।
बेगूसराय से पटना तक हंगामा
बेगूसराय में शनिवार को बीजेपी कार्यकर्ता कांग्रेस कार्यालय में घुस गए और जोरदार प्रदर्शन किया। पुलिस को स्थिति संभालने के लिए बीच-बचाव करना पड़ा। वहीं, पटना के गांधी मैदान में बीजेपी सांसद और विधायक मौन धरने पर बैठे। उनका संदेश साफ था कि राहुल गांधी को माफी मांगनी चाहिए, वरना आंदोलन और तेज होगा।
उत्तर प्रदेश तक फैला असर
यह विवाद बिहार तक ही सीमित नहीं रहा। लखनऊ में भी भाजपा कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस दफ्तर का घेराव कर राहुल गांधी मुर्दाबाद और मोदी जिंदाबाद के नारे लगाए। इससे साफ है कि बीजेपी इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर तक ले जाकर कांग्रेस पर दबाव बनाना चाहती है।
पोस्टर वार और कानूनी लड़ाई
पटना में कांग्रेस और राजद नेताओं के खिलाफ पोस्टर वार शुरू हो गया है। पोस्टरों में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव पर प्रधानमंत्री मोदी और उनकी मां का अपमान करने का आरोप लगाया गया है। वहीं, मुजफ्फरपुर कोर्ट में राहुल, तेजस्वी और सैकड़ों कार्यकर्ताओं के खिलाफ परिवाद दायर हुआ है। इस मामले की सुनवाई 11 सितंबर को होगी, जिससे विवाद का कानूनी पहलू भी गहराता जा रहा है।
राजनीति का तापमान बढ़ाने की रणनीति
बीजेपी के लिए यह विवाद विपक्ष पर आक्रामक होने का बड़ा अवसर है। राहुल गांधी के बयान को पार्टी जनता की भावनाओं से जोड़ रही है और इसे चुनावी मैदान तक ले जाने की तैयारी में है। दूसरी ओर, कांग्रेस और राजद रक्षात्मक स्थिति में हैं।
राहुल गांधी के एक बयान ने बिहार की राजनीति को नए सिरे से गरमा दिया है। पोस्टर युद्ध, सड़क पर प्रदर्शन और कोर्ट केस यह संकेत दे रहे हैं कि आने वाले दिनों में यह विवाद और गहराएगा, जिसका सीधा असर आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों की रणनीति पर भी पड़ सकता है।