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Author: Dinesh Bhadauria
नई दिल्ली। अनिल अंबानी पर छापों के बाद अब उनके बड़े भाई मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी का वनतारा एनिमल रेस्क्यू सेंटर जांच की जद में आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के जामनगर स्थित वनतारा वाइल्डलाइफ रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर की जांच के लिए 4 सदस्यीय स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) का गठन किया है। वनतारा सेंटर को रिलायंस फाउंडेशन संचालित करता है। यह जांच अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय वन्यजीव कानूनों के उल्लंघन के आरोपों को लेकर की जा रही है। हाईकोर्ट के निर्देश पर की गई थी शिफ्ट यह विवाद 36 वर्षीय हथिनी महादेवी उर्फ माधुरी को लेकर…
रायपुर। छत्तीसगढ़ कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों के बीच सियासी हलचल तेज हो गई है। पूर्व मंत्री और वरिष्ठ नेता रविंद्र चौबे ने रविवार को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के जन्मदिन पर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि प्रदेश की जनता चाहती है कि कांग्रेस का नेतृत्व भूपेश बघेल करें। आने वाले समय में भी पार्टी की कमान उन्हीं के हाथों में रहनी चाहिए। चौबे ने दावा किया कि अगली राजनीतिक लड़ाई भाजपा सरकार के कुशासन और प्रधानमंत्री मोदी की गारंटी से है और इस मुकाबले में कांग्रेस को विजय दिलाने की ताकत केवल भूपेश बघेल में है। पीसीसी…
भोपाल। भारत को ब्रिटिश इंडिया आजादी तो 21 अक्टूबर 1943 को ही मिल गई थी। आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को ब्रिटिश इंडिया को अंग्रेजों की हुकूमत से स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया था। उस समय जर्मनी, जापान, मानचुआ, आयरलैंड, चीन, इटली, फिलिपींस सहित कुल 11 देशों मान्यता भी प्रदान की गई थी। पहले अंडमान निकोबार हुए थे मुक्त सबसे पहले अंडमान निकोबार को अंग्रेजों से मुक्त कराया गया था। 1944 में आजाद हिंद फौज ने कुछ प्रदेशों को अधीन करने के लिए संघर्ष कर आजाद भी करा लिया था।…
भोपाल। मध्य प्रदेश में बाघों की मौत का आंकड़ा चिंताजनक स्तर तक पहुंच चुका है। इस साल (2025) के केवल आठ महीनों में राज्य में अब तक 40 बाघों की मौत हो चुकी है। इससे राज्य में बाघों की मौत का आंकड़ा देश में सबसे ज्यादा हो गया है, जबकि यह आंकड़ा पिछले साल (2024) में 50 था। बाघों की मौत के कारणों को लेकर सवाल उठ रहे हैं, और संरक्षण अधिकारियों के लिए यह एक गंभीर चुनौती बन चुकी है। बाघों की मौत पर सवाल उठते कारण मध्य प्रदेश के बाघों की मौतों की संख्या में वृद्धि ने कई…
भोपाल। मध्यप्रदेश कांग्रेस ने हाल ही में अपनी संगठनात्मक सर्जरी के तहत (mp Congress district presidents list) जिलाध्यक्षों की नई सूची जारी की, लेकिन यह सर्जरी पार्टी के लिए इलाज से ज्यादा नासूर साबित होती दिख रही है। नई नियुक्तियों ने कांग्रेस के भीतर असंतोष और बगावत पैदा कर दी है। सबसे बड़ा विवाद इस बात को लेकर है कि कई वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं, जिनमें जयवर्धन सिंह और प्रियव्रत सिंह जैसे बड़े नाम शामिल हैं, को केवल जिलाध्यक्ष बनाकर सीमित कर दिया गया है। राघौगढ़ सीट से विधायक बता दें, जयवर्धन सिंह इस समय राघौगढ़ सीट से विधायक हैं…
टाइगरमैन ऑफ इंडिया: फतेह सिंह राठौड़ की अद्भुत गाथा भारत में अगर किसी एक व्यक्ति का नाम बाघ संरक्षण की कहानी में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है, तो वह हैं फतेह सिंह राठौड़ — जिन्हें पूरे देश में टाइगरमैन ऑफ इंडिया के नाम से जाना जाता है। उनकी जिंदगी रोमांच, साहस, त्याग और जुनून का ऐसा संगम थी, जो न केवल वन्यजीव प्रेमियों के लिए प्रेरणा है, बल्कि यह संदेश भी देती है कि अगर इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो एक अकेला इंसान भी पूरी तस्वीर बदल सकता है। रणथम्भौर — बाघ प्रेमियों का स्वर्ग आज रणथम्भौर नेशनल पार्क दुनियाभर…
दिनेश सिंह भदौरिया, सीहोर। किसी के हाथ—पैर टूट जाएं या कोई अन्य अंग—भंग हो जाए तो रातापानी टाइगर रिजर्व के बफर जोन में स्थित मानता माता उन्हें ठीक कर देती हैं। जब व्यक्ति का अंग ठीक हो जाता है तो वह माता को ठीक हुए अंग की प्रतिकृति बनाकर विशेष पूजा के साथ भेंट करता है। जैसे किसी का टूटा हाथ ठीक हो जाए तो वह व्यक्ति मानता अर्थात् मनौती पूरी होने पर देवी को लकड़ी का हाथ अर्पित करता है। देवी के अधिकांश आराधक उन्हें मान्यता माता की जगह मानता माता कहकर ही बुलाते हैं। यहां विराजमान हैं मानता…
दिनेश सिंह भदौरिया, औबेदुल्लागंज। बब्बर शेर इस शिवलिंग के सामने नतमस्तक होकर बैठता था, एकदम शांत। ऐसा लगता था जैसे शिव की आराधना में लीन हो। इस स्थान पर उसने कभी किसी जीव का शिकार भी नहीं किया। यहां आने वाले लोग और श्रद्धालु इसे शिव की शक्ति का चमत्कार मानते हैं। महादेव शिव का यह स्थान आज केरी महादेव के नाम से जाना जाता है, जो रातापानी टाइगर रिजर्व में आता है। बताया जाता है कि यहां सिंह के आकर बैठने से इस शिवलिंग को केहरी महादेव के नाम से पुकारा जाता था। सिंह को केहरी भी कहते हैं।…
दिनेश सिंह भदौरिया सीहोर। कभी रातापानी के जंगलों में बब्बर शेर भी घूमते थे। इन जंगलों में शहद, शिलाजीत और जड़ी-बूटियों के खजाने थे। जड़ी-बूटियां इतनी ज्यादा मात्रा में उपलब्ध थीं कि सफेद मूसली जैसी जड़ी की कीमत मात्र दो रुपए प्रतिकिलो थी। खुशलगढ़ के जंगलों में पहाड़ी पर शिलाजीत और शहद के लिए जाते थे, जहां भालुओं का डर रहता था। उस समय आग जलाने के लिए माचिस भी सुलभ नहीं होती थी। घर वापस नहीं लौटी थी भैंस ज्ञान सिंह दांगी बताते हैं कि जब वे करीब 17 साल के रहे होंगे, तब एक घटना घटी। एक दिन…