भोपाल। टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश में बाघ और वन्यजीवों को बचाने के सारे हाइटेक इंतजामों को धता बताते हुए शिकारियों ने बाघों और अन्य वन्यजीवों का शिकार किया। हाइटेक इंतजामों के बावजूद शिकार और अन्य कारणों से हो रही बाघों-तेंदुओं समेत वन्यजीवों की मौत पर प्रभावी अंकुश नहीं लगाया जा सका है। मध्यप्रदेश में जनवरी से अगस्त तक 40 बाघों और शावकों की मौत पर पीसीसीएफ एंड हॉफ वीएन अम्बाडे ने पत्र लिखकर सभी जिम्मेदारों के तार तो कसे, लेकिन जमीनी स्तर पर खास असर नहीं दिखा। एम-स्ट्राइप्स, मानसून पेट्रोलिंग समेत तमाम संसाधनों और व्यवस्थाओं के बावजूद कम समय में इतने बाघों का मारा जाना गंभीर स्थिति है। हालांकि, स्टेट टाइगर स्ट्राइक फोर्स ने शिकारियों और बालाघाट में लापरवाही बरतने वाले वनकर्मियों पर इनाम घोषित कर तलाश तेज कर दी है।
लापरवाही पर पर गंभीर चिंता
पीसीसीएफ एंड हॉफ अपने पत्र में 20-25 दिनों में टाईगर रिजर्व और क्षेत्रीय वनों में 5-6 बाघों एवं तेंदुओं की मौत पर गंभीर चिंता जता चुके हैं, फिर भी वन्यजीवों की मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है। तमाम इलेक्ट्रॉनिक और जमीनी संसाधनों के बावजूद कम समय में बाघ, तेंदुओं की इतनी मौतों पर सवाल उठे हैं। पेंच और सतपुडा टाईगर रिजर्व में बाघों की मौत आपसी संघर्ष में बताई गई है, जबकि बाघों में आपसी संघर्ष के समय उनकी दहाड़ दूर तक सुनाई देती है। ऐसी स्थिति में एक बाघ की मौत की जानकारी स्थानीय अमले को नहीं होना बड़ी लापरवाही को दर्शाती है।
जनवरी से अब तक 40 मौतें
जनवरी 2025 से अगस्त तक प्रदेश में 40 बाघ और शावकों की मौत हो चुकी है। आंकड़े बताते हैं कि 19 अगस्त तक इनमें सबसे ज्यादा 21 मौतें टाइगर रिजर्व के अंदर हुईं, जबकि शेष घटनाएं रिजर्व से बाहर दर्ज की गईं। उपलब्ध जानकारी के अनुसार कान्हा टाइगर रिजर्व में 6, पेंच टाइगर रिजर्व में 7, बांधवगढ टाइगर रिजर्व में 3, संजय दुबरी टाइगर रिजर्व में 3, सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में 2 बाघों की मौत हुई, जबकि 13 बाघों की मौत टाइगर रिजर्व से बाहर हुई।
एम-स्ट्राइप्स से निगरानी
मध्यप्रदेश के टाइगर रिजर्व में बाघों की सुरक्षा और निगरानी के लिए हाईटेक प्रणाली एम-स्ट्राइप्स लागू है। इसे राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने लॉन्च किया था। यह सॉफ्टवेयर-आधारित प्रणाली वन्यजीव संरक्षण में गेम-चेंजर मानी जाती है। इसके जरिए बाघों और अन्य वन्यजीवों की गतिविधियों, संख्या, आवास की स्थिति और खतरों का वास्तविक समय में डेटा एकत्र किया जाता है। एम-स्ट्राइप्स का प्रमुख उद्देश्य गश्त को मजबूत करना है। इसके तहत वन रक्षकों को जीपीएस सक्षम उपकरण और मानकीकृत प्रपत्रदिए जाते हैं, ताकि गश्ती कवरेज और वन्यजीवों की उपस्थिति का सटीक रिकॉर्ड रखा जा सके। एकत्रित डेटा को केंद्रीय सर्वर पर अपलोड कर जीआईएस तकनीक से जोड़ा जाता है। इससे शिकारियों की गतिविधियों, अवैध शिकार के संकेत, संवेदनशील स्थान, जल स्रोत और मानवीय हस्तक्षेप की जानकारी आसानी से मिलती है।
मानसून गश्त में कमी
पूर्व सीसीएफ डॉ. एसपीएस तिवारी का मानना है कि तकनीकी सिस्टम तभी सफल होगा जब जमीन पर अमला चौकस और जवाबदेह तरीके से काम करे। बाघों की मौतें बता रही हैं कि जमीनी प्रबंधन दुरुस्त नहीं है। मानसून पेट्रोलिंग नहीं हो रही है। लोकेशन पर वनरक्षक, वनपाल, डिप्टी रेंजर, रेंजर आदि प्रॉपर गश्त करें। वन समितियां समितियां सक्रिय नहीं हैं। इससे जमीनी स्तर पर वन क्षेत्र में क्या हो रहा है, कौन आवागमन कर रहा है, यह सब पता नहीं चल पाता है। मुखबिर तंत्र कमजोर होने से सटीक सूचनाएं नहीं मिलती हैं।
									 
					