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    आजादी तो 1943 में ही मिल गई थी! नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को कर दी थी स्वतंत्र राष्ट्र की घोषणा

    Dinesh BhadauriaBy Dinesh BhadauriaAugust 25, 2025Updated:August 25, 2025No Comments3 Mins Read
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    भोपाल। भारत को ब्रिटिश इंडिया आजादी तो 21 अक्टूबर 1943 को ही मिल गई थी। आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को ब्रिटिश इंडिया को अंग्रेजों की हुकूमत से स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया था। उस समय जर्मनी, जापान, मानचुआ, आयरलैंड, चीन, इटली, फिलिपींस सहित कुल 11 देशों मान्यता भी प्रदान की गई थी।

    पहले अंडमान निकोबार हुए थे मुक्त

    सबसे पहले अंडमान निकोबार को अंग्रेजों से मुक्त कराया गया था। 1944 में आजाद हिंद फौज ने कुछ प्रदेशों को अधीन करने के लिए संघर्ष कर आजाद भी करा लिया था। द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों से लड़ने के लिए सुभाषचंद्र बोस ने जापान के सहयोग से आजाद हिंद फौज की स्थापना की थी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस को चुनौती देने के लिए जवाहर लाल नेहरू ने मोहनलाल करमचंद गांधी को भ्रमित कर अंग्रेजों के साथ मिलकर 4 अप्रैल 1944 को आजाद हिंद फौज के खिलाफ युद्ध शुरू किया। यह युद्ध 22 जून 1944 तक चला, जिसमें आजाद हिंद फौज को पीछे हटना पड़ा।

    नेताजी थे नेहरू-गांधी की आंख की किरकिरी

    सन् 1938 में सुभाषचंद्र बोस कांग्रेस के निर्विरोध अध्यक्ष बने थे। महात्मा गांधी तो अबुल कलाम आजाद को अध्यक्ष बनाना चाहते थे। इसी को लेकर सुभाषचंद्र बोस उस समय महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू की आंख की किरकिरी बन गए थे। नेताजी बोस ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। हमारा गौरवशाली इतिहास रहा है, लेकिन वामपंथी विचारधारा के लोगों ने इतिहास को बिल्कुल उलट दिया। अंग्रेजों के गुलामों को स्वतंत्रता संग्राम सैनिक बता दिया और स्वतंत्रता के लिए बलिदान देने वालों को लुटेरा बना दिया। यह बड़ा दुर्भाग्य था, जिसे देश आज भी भुगत रहा है।

    गांधी को दी केसर-ए-हिंद की उपाधि

    इस देश के लोगों को यह भी नहीं पता होगा कि 28 जुलाई 1914 को शुरू हुए प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों को लड़ने के भारतीय लोगों की आवश्यकता पड़ी। इसके लिए महात्मा गांधी ने पूरे भारत में घूम—घूम कर भारतीयों को प्रेरित कर अंग्रेजों की सेना में भर्ती कराया। इस कार्य से खुश होकर अंग्रेजों ने महात्मा गांधी को “केसर ए हिंद” की उपाधि दी थी। इस विश्व युद्ध में 74000 भारतीय सैनिक मारे गए थे। इसी तरह, 1 सितंबर 1939 को शुरू हुए दूसरे विश्व युद्ध में भारतीयों को शामिल होने के लिए प्रेरित करने का जिम्मा फिर से अंग्रेजों ने महात्मा गांधी को सौंपा।

    ब्रिटिश इंडिया आर्मी में भर्ती को प्रेरित किया

    महात्मा गांधी ने पूरे भारत में घूम-घूमकर अंग्रेजों के सहयोग के लिए ब्रिटिश इंडिया आर्मी में भारतीयों को भर्ती कराया। इस युद्ध में 84000 से अधिक भारतीय मारे गए थे। इस समय तक अंग्रेज बहुत कमजोर हो चुके थे और उन्होंने भारत छोड़ने का मन बना लिया था। ऐसे समय में सुभाष चंद्र बोस को सहयोग की आवश्यकता थी, लेकिन जवाहर लाल नेहरू और महात्मा गांधी ने अंग्रेजों का सहयोग किया। यदि अंग्रेजों को नेहरू-गांधी का यह सहयोग नहीं मिला होता तो आज भारत सुभाषचंद्र बोस के नेतृत्व में विश्व का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र होता।

    अजय सिंह (लेखक मप्र पेट्रोलियम डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं।)

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