भोपाल। मध्यप्रदेश कांग्रेस ने हाल ही में अपनी संगठनात्मक सर्जरी के तहत (mp Congress district presidents list) जिलाध्यक्षों की नई सूची जारी की, लेकिन यह सर्जरी पार्टी के लिए इलाज से ज्यादा नासूर साबित होती दिख रही है। नई नियुक्तियों ने कांग्रेस के भीतर असंतोष और बगावत पैदा कर दी है। सबसे बड़ा विवाद इस बात को लेकर है कि कई वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं, जिनमें जयवर्धन सिंह और प्रियव्रत सिंह जैसे बड़े नाम शामिल हैं, को केवल जिलाध्यक्ष बनाकर सीमित कर दिया गया है।
राघौगढ़ सीट से विधायक
बता दें, जयवर्धन सिंह इस समय राघौगढ़ सीट से विधायक हैं और कमलनाथ सरकार में प्रभावशाली कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। वे प्रदेश कांग्रेस कमेटी में उपाध्यक्ष पद पर भी रह चुके हैं। इसी तरह प्रियव्रत सिंह भी कैबिनेट मंत्री बतौर पूर्व प्रदेश सरकार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी (mp Congress district presidents list news) संभाल चुके हैं। पूर्व मंत्री प्रियव्रत सिंह भले ही पिछला विधानसभा चुनाव हार गए हों, लेकिन क्षेत्र में उनकी पकड़ और कार्यकर्ताओं के बीच सम्मान बरकरार है।
लंबी रेस के घोड़ों को तवज्जो
गौरतलब है कि जून 2025 में जब राहुल गांधी भोपाल आए थे, तब उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि कांग्रेस में बारात में नाचने वाले या लंगड़े घोड़े नहीं चलेंगे। संगठन में लंबी रेस के घोड़ों को ही तवज्जो दी जाएगी। संगठन सृजन अभियान के तहत जिले के सबसे ताकतवर नेता को ही संगठन की जिम्मेदारी दी जाएगी। जयवर्धन सिंह ने नेतृत्व के निर्णय को सिर माथे लेते हुए समर्थकों और कार्यकर्ताओं से पूरी निष्ठा और लगन से काम में जुटने के लिए कहा है, लेकिन कार्यकर्ता इस निर्णय से सहमत होते नजर नहीं आ रहे हैं।
सूची के खिलाफ नाराजगी
कार्यकर्ताओं का कहना है कि जिन नेताओं ने विधानसभा और प्रदेश स्तर पर कांग्रेस की आवाज बुलंद की, उन्हें अब महज एक जिले की राजनीति तक बांध देना अनुचित और असहनीय है। समर्थक मान रहे हैं कि यह न केवल नेताओं की हैसियत घटाने जैसा कदम है, बल्कि पार्टी की भावी रणनीति को भी कमजोर करने वाला फैसला है। प्रदेश के कई जिलों में कार्यकर्ता अब सड़कों पर उतरकर इस सूची के खिलाफ नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। सोशल मीडिया से लेकर जमीनी स्तर तक, संगठन के इस फैसले को अदूरदर्शी करार दिया जा रहा है। कांग्रेस, जो पहले ही चुनावी हार और लगातार कमजोर होती जनाधार से जूझ रही है, ऐसे समय में आंतरिक कलह को और गहरा कर रही है।
संयम बरतने की अपील
वहीं, जयर्वधन सिंह का कहना है कि जो कार्यकर्ता विरोध कर रहे हैं वे संगठन सृजन को समझ नहीं पा रहे हैं। उन्होंने कार्यकर्ताओं को सोशल मीडिया या सड़क पर खुले तौर पर विरोध करने की जगह पार्टी फोरम में अपनी बात रखने की सलाह दी है। पार्टी के अंदरखाने का विरोध बाहर सड़कों पर फूटते हुए देख प्रदेश संगठन महामंत्री संजय कामले ने कार्यकर्ताओं से सृजन अभियान को लेकर संयम बरतने की अपील की है। उनका कहना है कि कार्यकर्ताओं को नेतृत्व के निर्णय पर भरोसा करना चाहिए और उसे स्वीकार करना चाहिए।कांग्रेस की संगठन सृजन की यह कोशिश फिलहाल संगठन में विरोध और गुटबाजी को अधिक हवा देगी, जिससे उबरने के लिए कांग्रेस लगातार छटपटा रही है। असंतुष्ट कार्यकर्ताओं और नेताओं का मानना है कि जब नेतृत्व वरिष्ठ नेताओं को छोटे पदों में सीमित कर देता है, तब न केवल नेताओं का मनोबल गिरता है बल्कि उनके समर्थकों का जोश भी ठंडा पड़ जाता है। यह किसी भी राजनीतिक दल के लिए आत्मघाती कदम साबित हो सकता है।
दिल्ली में संगठन सृजन अभियान की बैठक
राजनीति केवल आदेश और फैसलों से नहीं चलती, बल्कि कार्यकर्ताओं की निष्ठा और ऊर्जा से चलती है। कांग्रेस अगर इस नाराजगी को हल्के में लेती है, तो आने वाले समय में यह बवाल और गहराई ले सकता है। 24 अगस्त 2025 को दिल्ली में संगठन सृजन अभियान को लेकर कांग्रेस की महत्वपूर्ण बैठक हो रही है। आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों को नजर में रखते हुए कांग्रेस नेतृत्व बूथ से लेकर जिला स्तर तक पार्टी को मजबूत करने के लिए बारीकी से मॉनिटरिंग कर रहा है। असल सवाल यही है कि क्या यह फैसला पार्टी की स्थिति सुधार पाएगा या फिर इसे और कमजोर कर देगा?